समर्पण
Sunday, April 20, 2014
मुक्तिदाता
मैं पथिक
एकांत पथ पर चला जा रहा था
हर तरफ
कोहरे का साम्राज्य
,
एक दिन
पत्तों पर अपने ओसकण छोड़ कर
कोहरा हटा
और मुझे दिखी उस पथ की सुन्दरता
जिस पर मैं
अनमना सा चलता रहा था
दूर तक
,
और उसी पथ पर
मेरे स्वागत में
मुस्कराते हुए खड़े थे
मेरे मुक्तिदाता!
Tuesday, April 15, 2014
समर्पण
तुम
सागर
हो
मैं हूँ इक लहर
,
मेरी
नियति है
तुम्हारी बाहों में समाना
आ कर तुम में
मिल जाना
,
मैं
इक लहर
समर्पण करती हूँ
अपना अस्तित्व तुमको,
तुम ही दोगे
मेरे अस्तित्व को
पहचान
,
मैं तो यूँ ही
मिटाती रहूंगी
अपना अस्तित्व
तुम्हारी बाहों में
सदियों तक!
Newer Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)